बादशाहों की तरह और न वज़ीरों की तरह हम तो दरवेश थे आए यहाँ पीरों की तरह राज-महलों में कहाँ ढूँढ रहे हो हम को हम तो अजमेर में रहते हैं फ़क़ीरों की तरह हम भी इस मुल्क की तक़दीर का इक हिस्सा हैं हम न मिट पाएँगे हाथों की लकीरों की तरह जाँ-फ़िशानी से बहुत हम ने जड़े हैं आँसू मादर-ए-हिन्द तिरे ताज में हीरों की तरह दुश्मनों को तो यही बात बहुत खलती है हम तो ग़ुर्बत में भी ज़िंदा हैं अमीरों की तरह