ब-आसानी कहीं शादाँ दिल-ए-नाशाद होता है बड़ी बर्बादियों कै बा'द ये आबाद होता है ठहर ऐ गर्दिश-ए-दौराँ वो लब जुम्बिश में आते हैं सरापा गोश हो कर सुन कि क्या इरशाद होता है दर-ए-साक़ी से आज़ाद-ए-दो-आलम उठ नहीं सकता क़ुयूद-ए-मज़हब-ओ-मिल्लत से रिंद आज़ाद होता है गुज़िश्ता हाल-ए-उल्फ़त क्या सुनोगे क्या सुनाऊँगा ये क़िस्सा कुछ कहीं से कुछ कहीं से याद होता है पयाम-ए-सद-मुसीबत जानता हूँ इक तबस्सुम को लरज़ जाता हूँ जिस दिन ख़ुश दिल-ए-नाशाद होता है क़फ़स की तितलियों उठो गले मिल लो लिपट जाओ कि क़ैद-ए-ज़िंदगी से इक असीर आज़ाद होता है कहाँ पहली सी 'क़ैसर' रस्म-ए-शागिर्दी-ओ-उस्तादी जो इक मिस्रा भी कह लेता है अब उस्ताद होता है