बात ऐसी भी क्या हुई मुझ से दिल ने जो ली ख़बर मिरी मुझ से एक मुद्दत से बात कर न सकी वो मिला भी तो सरसरी मुझ से हर घड़ी नाम उस का लेती हूँ बस ये आदत नहीं गई मुझ से राह-ए-हक़ जिस को मैं ने दिखलाई उस की दुनिया सँवर गई मुझ से ये दुआ है कभी ख़फ़ा न हों मेरा रब और मिरे नबी मुझ से फ़िक्र-ए-उक़्बा भी कीजिए 'राहत' दिल ये कहता है हर घड़ी मुझ से