बात बढ़ जाने के आसार से डर लगता है आज-कल गर्मी-ए-गुफ़्तार से डर लगता है हम ने माँगी थीं दुआएँ कि ज़माना बदले अब हमें वक़्त की रफ़्तार से डर लगता है जिन में शामिल न हो महबूब का मंशा-ए-नज़र ऐसे जज़्बात के इज़हार से डर लगता है जिस को दावा हो बहुत अपनी ख़िरद-मंदी का उस के उलझे हुए अफ़्कार से डर लगता है ऐसा कुछ हो गया दुनिया-ए-अदब का माहौल एक फ़नकार को फ़नकार से डर लगता है अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो ज़िंदगी चाहते हैं प्यार से डर लगता है बंदगी से वो बहुत दूर नहीं हैं 'यकता' ऐसे मुनकिर जिन्हें इंकार से डर लगता है