बात होने को क्या नहीं होती इक क़ुबूल इल्तिजा नहीं होती इश्क़ का काम ज़ुल्म सहना है हुस्न में गो वफ़ा नहीं होती दिल पे कर जाए जो असर तेरे हर सदा वो सदा नहीं होती दिल में खींचती तो है तिरी तस्वीर कुछ मगर देर-पा नहीं होती याद तेरी भुलाएँ तो लेकिन दिल से ज़ालिम जुदा नहीं होती सिर्फ़ मुझ से ख़ताएँ होती हैं उन से कोई ख़ता नहीं होती इश्क़ है आफ़त-ए-मुसलसल 'मौज' इश्क़ की इंतिहा नहीं होती