बात ईमा-ओ-इशारत से बढ़ी आप ही आप उस की क़ुर्बत में बहलने लगा जी आप ही आप ताज़ा कलियों के तबस्सुम का सबब क्या होगा आया करती है जवानी में हँसी आप ही आप ज़र्द हाथों पे मोहब्बत की लहू रंग-ए-हिना वक़्त आया तो रची और रची आप ही आप बस कि रक्खा था मकाँ मुद्दतों तुम ने ख़ाली इस में बद-रूह कोई बसने लगी आप ही आप राख बनते वही चेहरा नहीं देखा जाता जिस के शो'ले की कभी धूम मची आप ही आप बिंत-ए-हव्वा किसी चेहरे से न धोका खाए केंचुली साँप बदलता है नई आप ही आप काश ऐसा भी हो क़ीमत न अदा करनी पड़े और मिल जाए मुझे कोई ख़ुशी आप ही आप