बात कैसी भी हो अंदाज़ नया देता था ऐसे हँसता था कि वो सब को रुला देता था कोई मायूस जो मिलता तो न रहता बे-आस रंग चेहरे पे तबस्सुम का सजा देता था उम्र भर रेत पे चलता रहा लेकिन वो शख़्स तपती राहों पे हरी घास बिछा देता था कोई अंजाम-ए-मोहब्बत की जो बातें करता फूल के चेहरे पे शबनम वो दिखा देता था मिरी ग़लती पे बिगड़ता भी बहुत था लेकिन और फिर मुझ को वो जी भर के दुआ देता था