बात की बात रहे बात का मफ़्हूम रहे और तख़य्युल मिरा ताज़ा रहे मा'सूम रहे हर नई सोच को मज़मून बना लूँगा मगर मेरा किरदार मिरी ज़ात से मौसूम रहे मेरी पहचान के सब लोग जुदा होते गए जो बचे मेरी तरह बेबस-ओ-मज़लूम रहे आज तक बनते रहे हैं जो हमारे ज़ामिन उन से हम हाथ मिलाने से भी महरूम रहे अब तो बस ख़ुद ही सुना करते हैं अपनी आवाज़ आप के क़दमों की आहट से भी महरूम रहे