बात कीजे ग़ैर से और हम से मुँह को मोड़िए टुक ख़ुदा से डरिए इन वज़्ओं को अपनी छोड़िए मुँह न मोड़ेगा ये आसी गर यूँही मंज़ूर है लीजिए संग-ए-जफ़ा और शीशा-ए-दिल तोड़िए तोड़ना दिल का तुम्हारे आगे गो आसान है पर तुम्हें तब जानें जब टूटे भी दिल को जोड़िए यार-ए-बे-परवा-ओ-जानिबदार उस की ख़ल्क़ सब हाए किस के सामने जा सर को अपने फोड़िए तोड़ कर कुछ उस से 'माहिर' हम को बन आता नहीं दिल में है फिर उस के आगे हाथ अपने जोड़िए