बच कर कहाँ मैं उन की नज़र से निकल गया इक तीर था कि साफ़ जिगर से निकल गया ख़ुद रफ़्तगी ही चश्म-ए-हक़ीक़त जो वा हुई दरवाज़ा खुल गया तो मैं घर से निकल गया महव-ए-जमाल रह गए हम कुछ ख़बर नहीं आया किधर से यार किधर से निकल गया कैसा हवा हुआ मिरे रोने को देख कर दामान-ए-अब्र दीदा-ए-तर से निकल गया रोने से हिज्र-ए-यार में तस्कीन हो गई दिल का बुख़ार दीदा-ए-तर से निकल गया आख़िर किया अख़ीर-ए-शब-ए-वस्ल ने मुझे दम पहली बाँग-ए-मुर्ग़-ए-सहर से निकल गया आहों ने मुझ को आतिश-ए-ग़म से नजात दी मानिंद-ए-दूद नार-ए-सक़र से निकल गया दिखलाया ना-तवानी ने घर यार का मुझे मिस्ल-ए-निगाह रौज़न-ए-दर से निकल गया साक़ी की चश्म-ए-मस्त ने ऐसे धुएँ उड़ाए शो'ला सा एक आतिश-ए-तर से निकल गया जोबन से ढल चली हैं कहाँ अब लटक की चाल वो पेच उन के मू-ए-कमर से निकल गया उस गुल के दाग़-ए-इश्क़ ने ऐसा किया गुदाज़ घुल घुल के मग़्ज़ शम्अ के सर से निकल गया मुश्किल है ऐ 'सबा' प करो जब्र इख़्तियार है ख़ैर दिल जो इश्क़ के शर से निकल गया