बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं उस के मुँह पर रंग बिरंगे साए हैं जलती आँखें ले कर भी इतराता हूँ सब के सपने मेरे अपने सपने हैं मेरा बदन है कितनी रूहों का मस्कन मेरी जबीं पर कितने कतबे लिक्खे हैं जब से किसी ने बीच में रख दी है तलवार हम-साए भी हम-साए से डरते हैं शहरी भँवरे से कहना ऐ बाद-ए-सबा नीम के पत्ते गाँव में अब भी कड़वे हैं एक ज़रा सी ठेस लगी और टूट गए दिल के रिश्ते कितने नाज़ुक होते हैं किस को दिखाऊँ अपनी नज़र से तेरा रूप तेरे भी तो एक नहीं सौ चेहरे हैं