बादल अम्बर पे न धरती पे शजर है बाबा ज़िंदगी धूप में सहरा का सफ़र है बाबा तुम कहाँ आ गए शीशों की तमन्ना ले कर ये तो इक संग-फ़रोशों का नगर है बाबा हम हैं क़ैद-ए-दर-ओ-दीवार से आज़ाद हमें जिस जगह रात गुज़ारी वही घर है बाबा मन हो दरवेश तो फिर तन पे क़बा हो कि अबा जोग बाना नहीं अंदाज़-ए-नज़र है बाबा बत्न हर संग में देखे जो कोई पैकर-ए-नाज़ किस को हासिल वो सनम-साज़-नज़र है बाबा सोच कर दश्त-ए-तमन्ना में क़दम रख 'साबिर' इस मरूथल में ब-हर-गाम ख़तर है बाबा