बदलने वाली है फ़ज़ा ऐ दिल कुछ और देर रुक है शब का आख़िरी पहर अँधेरे होंगे ज़ेर रुक जहान-ए-दिल पे रौशनी बिखेरने के वास्ते वो माहताब आएगा अभी नज़र न फेर रुक अभी अभी हुआ है इश्क़ अभी से क्यों है मुज़्तरिब लगेगा तेरी ज़िंदगी में भी ग़मों का ढेर रुक बहुत दिनों के बा'द आए हैं वो ख़्वाब में उन्हें मैं आँख भर के देख लूँ ऐ ख़्वाब थोड़ी देर रुक नबात-ओ-नख़्ल पर गिराँ गुज़रता है ये मश्ग़ला दरख़्त के तने पे यूँ हुरूफ़ मत उकेर रुक नहीं है काम बुज़दिलों का इश्क़ के महाज़ पर यहाँ सभी दिलेर हैं जो तू भी है दिलेर रुक मिलेगी दाद-ए-फ़न कुजा जलेंगे तुझ से हम-सुख़न हर एक बज़्म में हुनर के जल्वे मत बिखेर रुक दिल-ए-ग़रीब को ऐ 'शाद' ख़्वाहिशों के जाल में क़सम है तुझ को यूँ न बे-मुरव्वती से घेर रुक