बदन छुपाने को कुछ मेरे पास था ही नहीं जो ज़ेब-ए-तन था वो मेरा लिबास था ही नहीं मैं जिस के हिज्र को दिल से लगा के बैठा रहा वो मुझ को छोड़ के बिल्कुल उदास था ही नहीं मुझे तो प्यासा तिरे मय-कदे से लौटना था कि मेरे हाथ में कोई गिलास था ही नहीं उसी की ख़ुशबू की आहट चहार-जानिब थी जो मेरे पास था और आस-पास था ही नहीं तमाम उम्र तज़ादात का शिकार रहे जो तुझ को रास था वो मुझ को रास था ही नहीं