बदन के लुक़्मा-ए-तर को हराम कर लिया है कि ख़्वान-ए-रूह पे जब से तआम कर लिया है बताओ उड़ती है बाज़ार-ए-जाँ में ख़ाक बहुत बताओ क्या हमें अपना ग़ुलाम कर लिया है ये आस्ताना-ए-हसरत है हम भी जानते हैं दिया जला दिया है और सलाम कर लिया है मकाँ उजाड़ था और ला-मकाँ की ख़्वाहिश थी सो अपने आप से बाहर क़याम कर लिया है बस अब तमाम हो ये वहम ओ ए'तिबार का खेल बिसात उलट दी सभी सारा काम कर लिया है किसी से ख़्वाहिश-ए-गुफ़्तार थी मगर 'साक़िब' वुफ़ूर-ए-शौक़ में ख़ुद से कलाम कर लिया है