बदन-दरीदा-ओ-बे-बर्ग-ओ-बार होना भी मिरे ही वास्ते फिर शर्मसार होना भी नज़र उठाऊँ मैं जब जब भी दश्त-ए-शब देखूँ अजीब शय है सहर का शिकार होना भी तरीक़ सारे गुमाँ के क़दम से लिपटे हैं कि मेरे सर है हक़ीक़त-निसार होना भी मिरे ही नाम पे मंज़िल-रसी ये ठहरी है मिरे लिए ही मगर पा-फ़िगार होना भी मैं उस ज़मीन का वारिस हूँ 'शाह' ये भी है मिरे नसीब में हिजरत-शिआ'र होना भी