बादबाँ खोलेगी और बंद-ए-क़बा ले जाएगी रात फिर आएगी फिर सब कुछ बहा ले जाएगी ख़्वाब जितने देखने हैं आज सारे देख लें क्या भरोसा कल कहाँ पागल हवा ले जाएगी ये अँधेरे हैं ग़नीमत कोई रस्ता ढूँड लो सुब्ह की पहली किरन आँखें उठा ले जाएगी होश-मंदों से भरे हैं शहर और जंगल सभी साथ किस किस को भला काली घटा ले जाएगी जागते मंज़र छतें दालान आँगन खिड़कियाँ अब के फेरे में हवा ये भी उड़ा ले जाएगी एक इक कर के सभी साथी पुराने खो गए जो बचा है वो निगाह-ए-सुर्मा-सा ले जाएगी जाते जाते देख लेना गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार ज़िंदगी से बाँकपन लुत्फ़-ए-ख़ता ले जाएगी