बढ़ गई वहशत बहार-ए-फ़ित्ना-सामाँ देख कर हँस रहा हूँ ख़ुद-बख़ुद चाक-ए-गरेबाँ देख कर कौन तुम को रोकता है हाँ मगर कहता ये हूँ दिल में नश्तर दो हुजूम-ए-दाग़-ए-अरमाँ देख कर क्या कहूँ छिटके हुए बालों ने क्या ढाया ग़ज़ब दिल परेशाँ हो गया ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ देख कर रात-भर शबनम ही क्या रोती रही गुलज़ार में रो दिए हम भी गुलों का चाक दामाँ देख कर दो तुम इतना ग़म कि आसानी से जितना उठ सके आज़माओ ताक़त-ए-बीमार-ए-हिज्राँ देख कर