बाढ़ आई गाँव को दरिया बहा कर ले गया एक प्यासा दूसरे प्यासे को आ कर ले गया रूह में सदियों का सन्नाटा बसा कर ले गया मैं जो अर्ज़-ए-शहर से सहरा उठा कर ले गया ज़ेहन की अलमारियों में धूल सी उड़ने लगी कोई अल्फ़ाज़-ओ-मआ'नी सब चुरा कर ले गया रह गया क़ाएम फिर उस की पाक-बाज़ी का भरम फिर वो इक शैतान से ख़ुद को बचा कर ले गया पहले की मानिंद लुत्फ़-ए-आबला-पाई नहीं कौन मेरी राह के काँटे उठा कर ले गया कौड़ियों के मोल 'ताहिर' बिक गई जिंस-ए-हुनर माल-ए-मुफ़्लिस हर कोई क़ीमत घटा कर ले गया