बढ़ा तन्हाई में एहसास-ए-ग़म आहिस्ता आहिस्ता हमें याद आए सब अहल-ए-करम आहिस्ता आहिस्ता दिल-ए-मुज़्तर की बेताबी का आलम कैसा आलम है खिंचा जाता है दिल सू-ए-सनम आहिस्ता आहिस्ता चला हूँ मंज़िल-ए-जानाँ मैं कुछ ऐसे तअस्सुर से नज़र शर्मिंदा शर्मिंदा क़दम आहिस्ता आहिस्ता निगाह-ए-लुत्फ़ किस की हो गई मेरे मुक़द्दर पर ये किस का हो गया हुस्न-ए-करम आहिस्ता आहिस्ता मोहब्बत करने का हम को सिला अच्छा मिला ऐ दिल सिमट आए मिरे दामन में ग़म आहिस्ता आहिस्ता हक़ीक़त में अगर पूछो बहारान-ए-गुलिस्ताँ का चमन वालों ने तोड़ा है भरम आहिस्ता आहिस्ता कहाँ तक ज़ब्त करते बज़्म की कोताह-बीनी को मुबीन उठना पड़ा बा-चश्म-ए-नम आहिस्ता आहिस्ता