बदले बदले मिरे ग़म-ख़्वार नज़र आते हैं मरहले इश्क़ के दुश्वार नज़र आते हैं कश्ती-ए-ग़ैरत-ए-एहसास सलामत यारब आज तूफ़ान के आसार नज़र आते हैं इंक़लाब आया न जाने ये चमन में कैसा ग़ुंचा-ओ-गुल मुझे तलवार नज़र आते हैं जिन की आँखों से छलकता था कभी रंग-ए-ख़ुलूस इन दिनों माइल-ए-तकरार नज़र आते हैं जो सुना करते थे हंस हंस के कभी नामा-ए-शौक़ अब मिरी शक्ल से बेज़ार नज़र आते हैं उन के आगे जो झुकी रहती हैं नज़रें अपनी इस लिए हम ही ख़ता-वार नज़र आते हैं दुश्मन-ए-ख़ू-ए-वफ़ा रस्म-ए-मोहब्बत के हरीफ़ वही क्या और भी दो-चार नज़र आते हैं जिंस-ए-नायाब-ए-मोहब्बत की ख़ुदा ख़ैर करे बुल-हवस उस के ख़रीदार नज़र आते हैं वक़्त के पूजने वाले हैं पुजारी उन के कोई मतलब हो तो ग़म-ख़्वार नज़र आते हैं जाएज़ा दिल का अगर लो तो वफ़ा से ख़ाली शक्ल देखो तो नमक-ख़्वार नज़र आते हैं रोज़-ए-रौशन में अगर उन को दिखाओ तारे वो ये कह देंगे कि सरकार नज़र आते हैं हम न बदले थे न बदले हैं न बदलेंगे 'शकील' एक ही रंग में हर बार नज़र आते हैं