ख़ुश-क़ामती के ज़ो'म में दानाई जाएगी सूरज न देख आँख की बीनाई जाएगी यारब कोई फ़रिश्ता जिसे दोस्त कह सकूँ इंसान की तलाश में बीनाई जाएगी दो चार झूट बोल के आई बला को टाल सच बोलने के जुर्म में गोयाई जाएगी नस्ली रक़ाबतों में गए अपने बाम-ओ-दर अब आपसी निफ़ाक़ में अँगनाई जाएगी ज़ख़्मों से है 'जमील' मज़ाक़-ए-सुख़न में जाँ ये भर गए तो फिर सुख़न-आराई जाएगी