'बद्र' ज़ाहिर रुख़ से है आसार-ए-मर्ग इश्क़ का आज़ार है आज़ार-ए-मर्ग बंद हो कर दीदा-ए-इबरत खुले समझे बा'द-ए-मर्ग हम असरार-ए-मर्ग दहरिये मुनकिर ख़ुदा के हों तो हों कर नहीं सकते मगर इंकार-ए-मर्ग क्या बचे उम्र-ए-गुरेज़ाँ भाग कर तेज़-तर है बर्क़ से रफ़्तार-ए-मर्ग नज़्अ' में हूँ जल्द कर दो ख़ात्मा लो निगाह-ए-नाज़ से तुम कार-ए-मर्ग हिज्र की दुश्वारियाँ सहल उस ने की मर्ग मेरी यार है मैं यार-ए-मर्ग मरने वाले पर्दा-पोशी करने हैं छुपते हैं लेकिन कहीं आसार-ए-मर्ग सब बराबर हैं जवान-ओ-तिफ़्ल-ओ-पीर ला-उबाली है मगर सरकार-ए-मर्ग राहज़न का नक़्द-ए-जाँ को डर नहीं है अजब हिस्न-ए-हसीं दीवार-ए-मर्ग ख़ुश्क लब पथराईं आँखें रंग ज़र्द 'बद्र' छुपते हैं कहीं आसार-ए-मर्ग