बाग़ में तू कभू जो हँसता है ग़ुंचा-ए-दिल मिरा बिकस्ता है अरे बे-मेहर मुझ को रोता छोड़ कहाँ जाता है मेंह बरसता है तेरे मारों हुओं की सूरत देख मेरा मरने को जी तरसता है तेरी तरवार से कोई न बचा अब कमर किस उपर तू कसता है क्यूँ मोज़ाहिम है मेरे आने से कुइ तिरा घर नहीं ये रस्ता है मेरी फ़रियाद कोई नहीं सुनता कोई इस शहर में भी बस्ता है 'हातिम' उस ज़ुल्फ़ की तरफ़ मत देख जान कर क्यूँ बला में फँसता है