बाग़ी हुदूद से बहुत आगे निकल गए सूरज छुआ न था कि मिरे हाथ जल गए ये हैरतों के बीच में हैरत-ज़दा नुक़ूश कैसे तमाशबीन थे पत्थर में ढल गए जज़्बात में कुछ इस तरह उस का बदन था सुर्ख़ ज़ंजीर आहनी के कड़े ही पिघल गए बगुलों से उन के रूप भगत बन के आए कुछ मक्खी को यार छोड़ के हाथी निगल गए टीले से क़हक़हों की फुवारों में थे 'ग़नी' तीर एक आँख वाले अचानक उछल गए