बग़ैर साग़र ओ यार-ए-जवाँ नहीं गुज़रे हमारी उम्र के दिन राएगाँ नहीं गुज़रे हुजूम-ए-गुल में रहे हम हज़ार दस्त दराज़ सबा-नफ़स थे किसी पर गिराँ नहीं गुज़रे नुमूद उन की भी दौर-ए-सुबू में थी कल रात अभी जो दौर-ए-तह-ए-आसमाँ नहीं गुज़रे नुक़ूश-ए-पा से हमारे उगे हैं लाला ओ गुल रह-ए-बहार से हम बे-निशाँ नहीं गुज़रे ग़लत है हम-नफ़सो उन का ज़िंदगी में शुमार जो दिन ब-ख़िदमत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ नहीं गुज़रे 'ज़फ़र' का मशरब-ए-रिंदी है इक जहाँ से अलग मिरी निगाह से ऐसे जवाँ नहीं गुज़रे