बहारों का समाँ है और मैं हूँ किसी का दास्ताँ है और मैं हूँ कहीं जिस का किनारा ही नहीं है वो बहर-ए-बे-कराँ है और मैं हूँ वो हैं और एक अंदाज़-ए-पशेमाँ वफ़ा का इम्तिहाँ है और मैं हूँ अता-ए-दर्द-ए-उल्फ़त की बदौलत निशात-ए-जावेदाँ है और मैं हूँ हुई है पुर्सिश-ए-हाल-ए-मोहब्बत निगाह-ए-तर्जुमाँ है और मैं हूँ तमन्नाओं की जलती रहगुज़र में ख़याल-ए-कारवाँ है और मैं हूँ वही बेताब अरमानों की दुनिया वही ग़म का धुआँ है और मैं हूँ जहाँ में अब ब-नाम-ए-शे'र 'अज़्मत' मिरा अपना जहाँ है और मैं हूँ