बहार नाम है मौसम के रुख़ बदलने का लो वक़्त आ गया बाग़ों में आम फलने का मैं हार मान चुका हूँ ख़ुशामदें कर के मगर वो नाम ही लेता नहीं पिघलने का वो डगमगा के भी साबित-क़दम ही रहता है हमें भी उस से हुनर सीखना है चलने का अजब नहीं है कि रुस्वाइयाँ ही हाथ आएँ सँभल भी जा कि अभी वक़्त है सँभलने का हथेलियों पे सजाए हैं जान परवाने अब इंतिज़ार है बस उन को शम्अ' जलने का हर एक मोड़ पे पहरे बिठा दिए गए 'दाग़' कोई भी रास्ता बाक़ी नहीं निकलने का