बहार-ए-गुल से अब दौर-ए-ख़िज़ाँ तक कहाँ से बात आ पहुँची कहाँ तक कहाँ जाएँगे अब आख़िर यहाँ से जो आ पहुँचे तुम्हारे आस्ताँ तक डुबो देगा हमें ख़ुद नाख़ुदा ही न था इस का कभी वहम-ओ-गुमाँ तक रफ़ू-गर आ के भी अब क्या सिएगा नहीं दामन की बाक़ी धज्जियाँ तक ग़ज़ब है जल गया दिल का नशेमन नहीं उट्ठा मगर इस से धुआँ तक पता देते हैं किस की अज़्मतों का मह-ओ-अंजुम से राह-ए-कहकशाँ तक तिरा 'जाँबाज़' हो कर डगमगाए भला दार-ओ-रसन के इम्तिहाँ तक