बहर-ए-हस्ती से भी जी घबरा गया बे-कसी बस अब किनारा आ गया कम हुआ करते हैं ऐसे ख़ुश-नसीब तुझ पे मर कर जिन को जीना आ गया मेरा मिट जाना तमाशा था कोई आप से ये किस तरह देखा गया दुख बुरे दिल की कहानी कुछ न पूछ फूल के हँसने पे रोना आ गया सुब्ह करना शाम-ए-ग़म का अल-अमाँ शम्अ' को दाँतों पसीना आ गया ख़ुश रहो तुम चल बसा बीमार-ए-ग़म उम्र-भर की उलझनें सुलझा गया राह-ए-उल्फ़त में है मरना ज़िंदगी दर्द मंज़िल तक मुझे पहुँचा गया मौसम-ए-गुल भी है आँखों में ख़िज़ाँ दिल ही क्या बैठा चमन मुरझा गया वो हुए क्या आँख से 'आरिफ़' निहाँ सारी दुनिया में अँधेरा छा गया