बहारें और वो रंगीं नज़ारे याद आते हैं वो दिलकश वादियाँ वो माह-पारे याद आते हैं मोहब्बत के वो जाँ-परवर सहारे याद आते हैं तिरी आग़ोश में जो दिन गुज़ारे याद आते हैं वो मौसम वो समाँ वो दिन वो सुब्ह-ओ-शाम वो रातें वो हँसते नाचते गाते सितारे याद आते हैं वो झीलें वो चमन वो ग़ुंचा-ओ-गुल और वो सब्ज़ा मिरे दिल को वो मंज़र प्यारे प्यारे याद आते हैं मसर्रत-बख़्श था कितना तरन्नुम आबशारों का वो लहरें वो सुकूँ-परवर किनारे याद आते हैं वो जल्वे हुस्न के वो शाहिद-ए-रंगीं की रा'नाई शबाब-ए-कैफ़-ओ-मस्ती के वो धारे याद आते हैं वो ज़ुल्फ़ें वो अदाएँ और वो रंग-ए-लब-ओ-आरिज़ ग़ज़ालीं अँखड़ियों के वो इशारे याद आते हैं नशात-ए-रूह ऐ मेरी बहार-ए-ज़िंदगी मुझ को तिरे पहलू में जो लम्हे गुज़ारे याद आते हैं