बहारों के रंगीं ज़माने हैं हम से मोहब्बत के सारे फ़साने हैं हम से हमारे भी दम से बड़ी रौनक़ें हैं सलामत तिरे बादा-ख़ाने हैं हम से जबीन-ए-अक़ीदत कहाँ ख़म नहीं है तुम्हारे तमाम आस्ताने हैं हम से हमारी तबाही पे रोएँगे इक दिन उन्हें भी बड़े ज़ख़्म खाने हैं हम से बड़ी सख़्त है ज़िंदगी की वफ़ा भी मुरत्तब अनोखे फ़साने हैं हम से जवानी से सदमे उठाएँगे हम भी जवानी को सदमे उठाने हैं हम से बहारों की नब्ज़ें हैं मम्नून 'अंजुम' चमन हम से हैं आशियाने हैं हम से