बहुत चुप हूँ कि हूँ चौंका हुआ मैं ज़मीं पर आ गिरा उड़ता हुआ मैं बदन से जान तो जा ही चुकी थी किसी ने छू लिया ज़िंदा हुआ मैं न जाने लफ़्ज़ किस दुनिया में खोए तुम्हारे सामने गूँगा हुआ मैं भँवर में छोड़ आए थे मुझे तुम किनारे आ लगा बहता हुआ मैं ब-ज़ाहिर दिख रहा हूँ तन्हा तन्हा किसी के साथ हूँ बिछड़ा हुआ मैं चला आया हूँ सहराओं की जानिब तुम्हारे ध्यान में डूबा हुआ मैं अब अपने-आप को ख़ुद ढूँढता हूँ तुम्हारी खोज में निकला हुआ मैं मिरी आँखों में आँसू तो नहीं हैं मगर हूँ रूह तक भीगा हुआ मैं बनाई किस ने ये तस्वीर सच्ची वो उभरा चाँद ये ढलता हुआ मैं