बहुत मुश्किल है तर्क-ए-आरज़ू रब्त-आश्ना हो कर गुज़र जा वादी-ए-पुर-ख़ार से बाद-ए-सबा हो कर लगा दोगे तमन्ना के सफ़ीने को किनारे से मआ'ज़-अल्लाह दावा-ए-ख़ुदाई ना-ख़ुदा हो कर हर इक हो सिलसिला रंगीं गुनाहों के सलासिल का नहीं आसान दुनिया से गुज़रना पारसा हो कर मिरी पिन्हाई-ए-इल्म-ओ-ख़बर की इंतिहा ये है कि इक क़तरे से ना-वाक़िफ़ हूँ दरिया-आश्ना हो कर कहाँ ताब-ए-जुदाई अब तो ये महसूस होता है कि मैं ख़ुद से जुदा हो जाऊँगा तुम से जुदा हो कर तिरा दर छोड़ दूँ लेकिन तिरे दर के सिवा साक़ी कहाँ जाऊँ किधर जाऊँ ज़माने से ख़फ़ा हो कर जो शिकवा उन से करना था वो उन के रू-ब-रू 'दर्शन' ज़बाँ तक आते आते रह गया हर्फ़-ए-दुआ हो कर