बैर है न कोई रक़ाबत है मेरा पैग़ाम बस मोहब्बत है मेरे दिल के ग़रीब-ख़ाने में आइए आप का स्वागत है और बाक़ी हैं जितने ग़म आएँ मुस्कुराना हमारी फ़ितरत है 'मीर' मुफ़्लिस थे लख-पति 'मंज़र' शाइ'री आज की तिजारत है तजरबों का निचोड़ है इतना ज़िंदगी प्यार से इबारत है काश दुनिया समझती ये 'नग़मी' प्यार करना भी इक इबादत है