बैठा था तन को ढाँक के जो गर्म शाल से मुश्किल में पड़ गया वो सितारों की चाल से ख़ामोशियों की राह पे हो कर के गामज़न रखना कभी न सोच का रिश्ता मलाल से उम्मीद ऐसी उन से मतानत की थी नहीं बच्चे बिगड़ गए हैं बहुत देख भाल से दम-ख़म तो कुछ नहीं था हक़ीक़त के नाम पर घबरा गया जहान हमारी मजाल से कुछ मस्लहत के नाम पे चुप चाप हम रहे वाक़िफ़ थे वर्ना वक़्त के पोशीदा हाल से चादर पे आसमान की बिखरी थी चाँदनी आरास्ता ज़मीन थी इस के जमाल से तुम शहर जा रहे हो तो जाओ मगर वहाँ अरमाँ मिलेंगे देखना बेहद निढाल से अफ़्सुर्दा फ़िक्र थी जो क़दामत के ख़ोल में शादाब हो गई है वो रौशन ख़याल से इक पत्ते की बिसात तुम्हारी है 'साहनी' मिट्टी में जा मिलोगे जुदा हो के डाल से