बैठे हैं तेरी बज़्म में इक अजनबी से हम ऐ दोस्त बाज़ आए तिरी दोस्ती से हम रंज-ओ-मलाल-ए-यास-ओ-अलम कर्ब-ओ-इज़्तिराब क्या क्या न ले के आए हैं तेरी गली से हम ये और बात है कि मोहब्बत है हम से दूर रखते नहीं हैं दिल में कुदूरत किसी से हम बल पेच पै-ब-पै तो शिकन मोड़ मोड़ पर गुज़रे हैं मौत ही की तरह ज़िंदगी से हम सुनने को सुन तो लेते हैं हम हर किसी की बात कहते नहीं हैं बात किसी की किसी से हम अंदाज़ और भी हैं मुलाक़ात के मगर मिलते हैं आदमी की तरह आदमी से हम 'बिस्मिल' हमारी सम्त भी इक जाम तो बढ़े बैठे हैं तेरी बज़्म में किस बेकसी से हम