बजा ये रौनक़-ए-महफ़िल मगर कहाँ हैं वो लोग यहाँ जो अहल-ए-मोहब्बत के जा-नशीं होंगे कहाँ से आज मिरी रूह में चमक उठ्ठे वो तेरे दुख जो तुझे याद भी नहीं होंगे ज़माना गर्म-ए-सफ़र है कहीं तो पाएगा वो दिल जो मेहर-ओ-मोहब्बत की सरज़मीं होंगे मैं कर रहा हूँ तिरी चश्म-ए-नम से अंदाज़ा कि आने वाले ज़माने बहुत हसीं होंगे 'सलीम' घर से निकल कर न जाओ सहरा में हवा के राग बहुत दर्द-आफ़रीं होंगे