बज़्म-ए-आलम में सदा हम भी नहीं तुम भी नहीं मुंकिर-ए-रोज़-ए-जज़ा तुम भी नहीं हम भी नहीं सर-फिरी तुंद हवा हम भी नहीं तुम भी नहीं मुल्क-दुश्मन ब-ख़ुदा हम भी नहीं तुम भी नहीं किस के ईमा पे है ये ख़ून-ख़राबा ये फ़साद क़ाइल-ए-जौ-ओ-जफ़ा हम भी नहीं तुम भी नहीं जान आपस की बुराई में गँवा दें अपनी इस क़दर ख़ुद से ख़फ़ा हम भी नहीं तुम भी नहीं हम को दस्तूर ने बख़्शे हैं बराबर के हुक़ूक़ कोई कमतर न सिवा हम भी नहीं तुम भी नहीं जज़्ब है ख़ाक-ए-वतन में जो बुज़ुर्गों का लहू इस की मिट्टी से जुदा हम भी नहीं तुम भी नहीं