बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी मौत भी मेरी एक तमाशा आलम को दिखलाएगी महव-ए-अदा हो जाऊँगा गर वस्ल में वो शरमाएगी बार-ए-ख़ुदाया दिल की हसरत कैसे फिर बर आएगी काहीदा ऐसा हूँ मैं भी ढूँडा करे न पाएगी मेरी ख़ातिर मौत भी मेरी बरसों सर टकराएगी इश्क़-ए-बुताँ में जब दिल उलझा दीन कहाँ इस्लाम कहाँ वाइज़ काली ज़ुल्फ़ की उल्फ़त सब को राम बनाएगी चंगा होगा जब न मरीज़-ए-काकुल-ए-शब-गूँ हज़रत से आप की उल्फ़त ईसा की अब अज़्मत आज मिटाएगी बहर-अयादत भी जो न आएँगे न हमारे बालीं पर बरसों मेरे दिल की हसरत सर पर ख़ाक उड़ाएगी देखूँगा मेहराब-ए-हरम याद आएगी अबरू-ए-सनम मेरे जाने से मस्जिद भी बुत-ख़ाना बन जाएगी ग़ाफ़िल इतना हुस्न पे ग़र्रा ध्यान किधर है तौबा कर आख़िर इक दिन सूरत ये सब मिट्टी में मिल जाएगी आरिफ़ जो हैं उन के हैं बस रंज ओ राहत एक 'रसा' जैसे वो गुज़री है ये भी किसी तरह निभ जाएगी