बला का ज़िक्र क्या ये मौज भी ग़नीमत है तमाशा देख रहे हैं यही ग़नीमत है किसी के माल से कोई ग़रज़ नहीं हम को हमारी जेब में जो है वही ग़नीमत है खुली हुई हैं जो राहें तो ये समझ लो तुम कि अपने शहर का मौसम अभी ग़नीमत है हमें है फ़ख़्र कि निस्बत के पासदार हैं हम हमारे वास्ते हर शय बड़ी ग़नीमत है ख़ुद अपने-आप को पत्थर बता रहे हैं सब नज़ाकतों से हैं वाक़िफ़ सभी ग़नीमत है मुसालहत की तमन्ना हुई है तो 'राहत' हर एक शर्त ही अब लग रही ग़नीमत है