बला से मर्तबे ऊँचे न रखना किसी दरबार से रिश्ते न रखना जवानों को जो दरस-ए-बुज़दिली दें कभी होंटों पे वो क़िस्से न रखना अगर फूलों की ख़्वाहिश है तो सुन लो किसी की राह में काँटे न रखना कभी तुम साइलों से तंग आ कर घरों के बंद दरवाज़े न रखना पड़ोसी के मकाँ में छत नहीं है मकाँ अपने बहुत ऊँचे न रखना नहीं है घर में माल ओ ज़र तो क्या ग़म विरासत में मगर क़र्ज़े न रखना रईस-ए-शहर को मैं जानता हूँ कोई उम्मीद तुम उस से न रखना बहुत बे-रहम है 'ताबिश' ये दुनिया तअल्लुक़ इस से तुम गहरे न रखना