बालीदगी-ए-ज़र्फ़ पे दिखलाए गए लोग हर गाम पे गुम-नाम है मिटवाए गए लोग इस फ़र्श-ए-तिलिस्मी को अता कर दी फ़राग़त यूँ तश्त-ए-फ़रेबी में ही बिखराए गए लोग क़िस्मत की लकीरों में जिन्हें बाँध के रक्खा आज़ादी की मसनद पे भी बिठलाए गए लोग हर रोज़ नया एक तमाशा हुआ जारी आराइश-ए-दुनिया में जो उलझाए गए लोग पेचीदगी-ए-फ़िक्र में क्या ख़ूब फँसाया एहसास के शानों से ही सुलझाए गए लोग दुनिया में दरिंदों को बड़े फ़ख़्र से भेजा हर ज़ुल्म पे फिर सब्र से समझाए गए लोग इक ख़ौफ़ था उस जा-ए-परेशाँ की फ़ज़ा में बे-ख़ौफ़ जो कुछ निकले वो धमकाए गए लोग बे-ख़ौफ़ी से जब ख़ौफ़ बढ़ा अहल-ए-जहाँ का मक़्तूल हुए ख़ाक में दफ़नाए गए लोग हक़ चुप ही रहे लब न खुलें सर न उठाए इस वास्ते बे-मौत भी मरवाए गए लोग नैरंगी-ए-किरदार पे हैरान हैं 'असरा' सौ पहलू से इक बज़्म में मिलवाए गए लोग