बन बन के बिगड़ती है मिरी बात तो देखो इस कूचा-ए-दिल में मिरी औक़ात तो देखो जो जिस्म तमन्ना में सुलगता है तुम्हारी उस जिस्म में हसरत भरी इक रात तो देखो जिस आँख ने देखे थे कभी ख़्वाब तुम्हारे उस आँख से होती हुई बरसात तो देखो ऐ वक़्त-शनासो ये कड़ा वक़्त है कैसा ऐ दस्त-शनासो मिरा तुम हात तो देखो जिस आँख में है ख़ून-ए-तमन्ना मिरा 'अफ़रोज़' उस आँख में सुरमे की करामात तो देखो