बन गया तदबीर से हर रास्ता तक़दीर का अब नहीं कुछ ख़ौफ़ पैरों को किसी ज़ंजीर का कर दिया ख़ामोश शो'लों ने जला कर हर वरक़ लफ़्ज़ फिर भी चीख़ता इक रह गया तहरीर का ख़ाक सरगर्दां है हर सू कुछ नहीं बदला यहाँ देखती हैं अब भी राहें रास्ता रहगीर का एक रुख़ पर थीं बहारें एक रुख़ बे-रंग-ओ-नूर और मेरी सम्त था बे-रंग रुख़ तस्वीर का जब निशाने पर मिरे दिल के सिवा कुछ भी न था फिर असर होता न क्यूँ तेरी नज़र के तीर का हम फ़क़ीरी में 'अलीना' शाद हैं आबाद हैं क्या हमें करना है तेरी दौलत-ओ-जागीर का