बन के इक ख़्वाब सा पलकों पे सँवर जाएँगे इक मुलाक़ात में हम दिल में उतर जाएँगे हम से मिलना हो तो जज़्बात छुपा कर मिलना वर्ना जज़्बात में हम आग सी भर जाएँगे इक तबस्सुम पे मिरे बदले ज़माने का चलन हम जो रूठे तो कई चेहरे उतर जाएँगे हम ग़म-ए-ज़ीस्त उठा कर तिरे पास आते हैं तू भी जो दर्द ही देगा तो किधर जाएँगे है मोहब्बत तो ज़माने में सभी हैं अपने वर्ना राही यूँही आएँगे गुज़र जाएँगे