बंद मुट्ठी से निकल जाते हो हद करते हो सपने भर बात ही मनवाते हो हद करते हो जिस्म की ऐसी महक जो मुझे पागल कर दे बन के ख़ुशबू मुझे महकाते हो हद करते हो क्या कहूँ कौन सा जादू है तिरे हाथों में मिरे बालों को जो सहलाते हो हद करते हो जान-ए-मन एक घड़ी देख कि दिल दुखता है छोड़ कर जब मुझे घर जाते हो हद करते हो अब तलक पूरा कोई भी नहीं कर पाए तुम ख़्वाब फिर भी हमें दिखलाते हो हद करते हो अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाऊँ जिस दम मुझ को दीवार में चुनवात हो हद करते हो उम्र भर कौन जवाँ रहता है जान-ए-'फ़र्रुख़' फिर भी तुम हुस्न पे इतराते हो हद करते हो