बने हुए हैं फ़सील-ए-नज़र दर-ओ-दीवार हर इक तरफ़ दर-ओ-दीवार पर दर-ओ-दीवार मुझे भी दर-ब-दरी में ही लुत्फ़ आता है मिरी बला से फ़राहम न कर दर-ओ-दीवार हमारे घर में तो मीनार बन गई हर ईंट छतों की हद में उठाते हैं सर दर-ओ-दीवार घटा का क्या है बरस कर निकल गई आगे यहाँ सिसकते रहे रात भर दर-ओ-दीवार हमारे राज़ में शामिल रहे पड़ोसी भी इसी लिए तो हैं दीवार-ओ-दर दर-ओ-दीवार ख़बर न फैलने पाए कि जा रहा है कोई नहीं तो सर पे उठा लेंगे घर दर-ओ-दीवार तिरा बदन तो सलामत है ऐ 'मुज़फ़्फ़र' फिर ये किस के ख़ून से हैं तर-ब-तर दर-ओ-दीवार