बाँट डाले ऐसे हम ने दिल के टुकड़े काट कर जन्म-दिन पे बाँटते हैं केक जैसे काट कर इक अँगूठी ले न पाएँ इतने में उस के लिए जोड़ रक्खे थे जो पैसे जेब ख़र्चे काट कर हम नदी के दो किनारे मिलना तो मुमकिन नहीं पर मिलेंगे एक दिन दोनों किनारे काट कर हौसलों पे इन परिंदों के न करना शक कभी है रिहा होना जिन्हें पिंजरा परों से काट कर इश्क़ जिस में ना बिछड़ने का ज़रा भी डर रहे खेलना है खेल पर साँपों के खाने काट कर ज़िंदगी से ऐसे काटा सीन उस ने इश्क़ का देखता है कोई जैसे फ़िल्म गाने काट कर