बरस के भी न मिरे काम आ सकी बारिश अभी वो खुल ही रहे थे कि धुल गई बारिश बुझा सकी न किसी तौर मेरी रूह की प्यास बदन की हद से तजावुज़ न कर सकी बारिश अजब नहीं कि जिगर तक उतर गई होती हमारे साथ अगर ख़ुद भी भीगती बारिश है ज़िक्र-ए-यार इसी इल्तिज़ाम से रंगीं महकता जिस्म जवाँ रात बे-ख़ुदी बारिश हमीं फ़रेब-ए-नज़र का शिकार होते रहे हवा के साथ बदलती थी सम्त भी बारिश कभी तो राज़ दिलों के टटोलती 'आसिम' कभी तो झाँकती आँखों में सर-फिरी बारिश